Suicide The Result of a Social Process
अक्सर न्यूज़ पेपर की Headlines में पड़ते है या फिर टीवी पर न्यूज़ में यह सुनते है कि आई आई टी के रिजल्ट से हताश एक लड़की ने फांसी लगाकर अपनी जान दी या फिर मेडिकल में दाखिला न मिल सकने के कारण खुद को जहर के हवाले किया अठारह वर्षीय लड़के ने । क्या कहेंगे आप ऐसी घटनाओ के बारे में शायद कुछ भी नहीं । एक मौन छा जाता है पूरे आलोक में । आंखे फटी की फटी रह जाती है । हम एक बार को तो खुद को सुरक्षित पाते है कि ऐसी दुर्घटनाये हमारे बच्चे के साथ घटित नहीं हुई पर ये सुरक्षा, सच पूछे तो क्षणिक है ।
हम भले अपने घरों की सारी जानकारियाँ रखते है पर आत्मा के घर में क्या चल रहा है ये हम नहीं जानते और जानने का प्रयास करते है । आत्मा के घर किसी आंकड़ों से नहीं चलते । वे चलते है एक दूसरे के प्रति एक समझ के भाव से, स्वीकार के भाव से और संतुष्टि के भाव से । हालाँकि इस तरह कि समस्या हमारे समाज में हमेशा से रही है और हमेशा से नजरअंदाज रही है पर पिछले एक दशक से अखबारों में इस तरह की हेडलाइंस पढ़ना बहुत ही आम बात हो चुकी है मानो ये सोने के दाम बढ़ने और घटने जैसी खबर हो । Chronic Depression कब Suicidal Behavior में तब्दील हो जाते है पता नहीं चलता पर इन सबके बीच जहाँ इन उलझावो ने जीवन को जकड़ा हुआ है वहीं एक रौशनी जागरूकता की भी नजर आती है बेशक हमारे समाज में आये दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही है पर आज का युवा वर्ग इस समस्या को जड़ से मिटाना अपनी जिम्मेदारी समझ रहा है । यह आशा की एक किरण है ।
आत्महत्या एक सामाजिक प्रक्रिया का परिणाम है । महान फ्रेंच समाज शास्त्री डेविड इमाइल दुर्खीम ने आत्महत्या के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा है कि आत्महत्या के कारण किसी व्यक्ति विशेष से जुड़े नहीं होते, बल्कि इसके लिए पूरा समाज जिम्मेदार है । वे कहते है कि अगर किसी समूह में आपसी साहचर्य कि भावना कमजोर है तो उसके सदस्यों में नैतिक या मनोवैज्ञानिक समस्या पाए जाने की आशंकाए ज्यादा होगी । इसके उलट अगर किसी समूह में साहचर्य की भावना बहुत ज्यादा हो तो उसके सदस्य अपने समूह के लिए त्याग करने को ज्यादा तत्पर हो जायेगे , जिससे आत्महत्या जैसी घटनाएं घटित नहीं होगीं ।